स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार
अल्पपरिचय :-
स्वामी विवेकानंदजी का जन्म 12, जनवरी
1863, को कोल्काता में हुआ . उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वामी जी के मन में
अध्यात्म एवं दर्शन की चेतना प्रखर हो गयी . स्वामीजी ने भारतीय दर्शन , ज्ञान तथा
जीवनमूल्यों को संपूर्ण विश्व में प्रसारित किया . आपके विचारों में सम्ता का संदेश
निहित है . आपको विश्वशान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है . आप स्वामी रामकृष्ण
परम्हन्स जी के विचारों से काफ़ी प्रभावित थे . स्वामी जी युवाओं के आदर्श हैं . प्रतीवर्ष 12 जनवरी का दिन
भारत में ' राष्ट्रीय युवा दिन ' के रूप में
मनाया जाता है .
प्रमुख रचनायें :- ' राज्योग ' ,प्रेमयोग
,' राज्योग ' ,' भगवान कृष्ण और भग्वतगीता , आदी .
1. एक समय पर एक ही कार्य करो. और वो
काम करते वक्त अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ .
2. यह हमारा चरित्र ही है , जो विपत्तियो
की अभेद दीवारो में से भी मार्ग बना लेता है .
3. सबसे बडा पाप ( अपराध ) है , खुद
को कमजोर समझना !
4. उठो , जागो और तब तक रुको मत , जब
तक लक्ष्य की प्राप्ती न हो जाए !
5. एक विचार ले लो . उसी एक विचार के
अनुसार अपने जीवन को बनाओ ; उसी को सोचो , उसी का स्वप्न देखो और उसी पर अवलंबित रहो
. अपने मस्तिष्क , मांसपेशियों , स्नायुओं और शरीर के प्रत्येक भाग को उसी विचार से
ओत-प्रोत होने दो और दूसरे सब विचारों को अपने से दूर रखो . यही सफलता का रास्ता है
और यही वह मार्ग है जिसने महान धार्मिक पुरुषों का निर्माण किया है .
6. यदी आप केवल पांच ही पर्खे हुए विचार
आत्मसात कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं , तो आप पूरे ग्रंथालय
को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं .
7. सत्य के लीए सब - कुछ त्यागा जा सकता
है , पर सत्य को किसी भी चीज़ के लिये छोडा नहीं जा सकता , उसकी बलि नहीं दी जा सकती
.
9. परमात्मा को प्राप्त करानेवाली विद्या
ही वास्तव में विद्या है .
10. मस्तिष्क की शक्तिया सूर्य की किरणो
के समान हैं , जब वो एकत्रित होकर केन्द्रित हो जाती हैं , तो चमक उठती है .
11. बडे काम करने के लिये तीन चीज़ों
की आवश्यकता होती है - बुद्धी , विचार्शक्ति और हृदय की शक्ती !
12. जीवन में निराशा से बडा कोई अभिशाप
नहीं है .
13. कर्मशक्ती तथा इच्छाशक्ती प्राप्त
करो , कठोर परिश्रम करो और तुम निश्चित ही लक्ष्य पर पहुंच जाओगे .
14. दो मनुष्यों के बीच में अंतर होने
का कारण उनका अपने - आपमें विश्वास होना और न होना ही है . अपने आप में विश्वास होने
से सब कुछ हो सकता है .
15. लक्ष्य को ही अपना जीवन -कार्य समझो
.हर क्षण उसी का चिन्तन करो , उसी का स्वप्न देखो . उसी के सहारे जीवित रहो .
16. जो भी चीज़ आपको शारीरिक , बौद्धिक
या आध्यतमिक रूप से कमजोर बनाये , उसे त्याग देने में ही भलाई है .
17. जो अपने लक्ष्य के प्रती पागल हो
गया है , उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है . जो थोडा इधर , थोडा उधर हाथ मारते हैं ,
वे कोई लक्ष्य पूर्ण नहीं कर पाते .
18. जीवन का पहला और स्पष्ट लक्षण है
विस्तार ! यदी तुम जीवित रहना चाहते हो तो तुम्हें फैलना ही होगा .जिस क्षण तुम जीवन
का विस्तार बंद कर दोगे उसी क्षण जान लेना की मृत्यु ने तुम्हें घेर लिया है , विप्त्तिया
तुम्हारे सामने हैं .
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